05 अगस्त 2024, झांसी।
प्रख्यात साहित्यकार महेश कटारे ने कहा कि बुंदेलखंड में कविता यानी काव्य का प्रभाव बहुत ज्यादा है।बुंदेलखंड काव्य की अनुपम धरती है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित हिंदी की राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह बुंदेलखंड शौर्य की धरती है। शौर्य का वर्णन जितनी खूबसूरती से काव्य में किया जा सकता है, उतना अन्य विधा में नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी की चिंताओं को देखते हुए साहित्य में नए उद्योग करने ही पड़ेंगे।
कटारे ने कहा कि कविता लिखना आसान नहीं है। उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी भी सुनाई। उन्होंने कहा कि हम अपनी खोई हुई चीजों को ढूंढ़ने के लिए साहित्य में जाते हैं। उन्होंने जगनिक और फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाओं पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज बुंदेली में बहुत प्रभावी लेखन किया जा रहा है। उन्होंने डॉ वृंदावन लाल वर्मा के गांव की मौजूदा दशा और उनकी साहित्यिक खूबियों की भी चर्चा की।
हिंदुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज, हिंदी विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ बीयू और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय चिरगांव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में बुंदेलखंड का योगदान, हिंदी साहित्य की विकास यात्रा और बुंदेली भाषा एवं साहित्य विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता डॉ आद्या प्रसाद द्विवेदी ने की। डॉ द्विवेदी ने कहा कि लोक साहित्य ने हिंदी साहित्य को बहुत प्रभावित किया है। रामचरित मानस में लोक शब्द 27 बार आया है। उन्होंने कहा कि यदि साहित्य को लोक से विलगित कर दिया तो वह थोथा रह जाएगा। उन्होंने बताया कि उन्हें डॉ वृंदावन लाल वर्मा से रूबरू होने का सौभाग्य मिला। उनसे मृगनयनी पर भी सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि मृगनयनी में भी लोक बार बार आया है। उन्होंने समाज में मोबाइल की बढ़ती लत पर भी चिंता जताई। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को पत्र और पत्रिकाओं को पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने हबीब तनवीर का जिक्र करते हुए कहा कि लोक शैली अपनाने के नाते वे समाज में प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने लोक कलाओं की खूबियों को भी रेखांकित किया।
रांची से आए प्रो जेवी पाण्डेय ने भगवान श्रीराम, महादेव और हनुमान जी को नमन करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सर्वाधिक प्रिय कवि रहे। उन्होंने कहा कि वे गुप्त जी की कविताओं को बचपन से ही पढ़ते और याद करते रहे। उन्होंने अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी समेत कई रचनाओं का उल्लेख किया। राम काव्य परंपरा में अनेक कवियों का योगदान है। उन्होंने राष्ट्रकवि को आधुनिक युग का तुलसीदास बताया। उन्होंने साकेत की रचना के मर्म को भी रेखांकित किया। हिंदी कविता को गुप्त जी ने बहुत कुछ दिया है। उनकी साहित्यिक साधना अतुलनीय है। गुप्त जी भारतीय संस्कृति के आख्याता हैं। गुप्त जी का साहित्य अनमोल है।
डॉ बहादुर सिंह परमार ने कहा कि सियासत के लिहाज से बुंदेलखंड बहुत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि आज बुंदेली गद्य, पद्य, निबंध, संस्मरण और नाटक बहुत बड़ी संख्या में लिखे जा रहे हैं लेकिन उनका समुचित ढंग से प्रचार और प्रसार नहीं हो पा रहा है। उन्होंने वर्तमान में सक्रिय लेखकों और साहित्यकारों का जिक्र भी किया।
सिद्धार्थ नगर से आए डॉ सत्येन्द्र दुबे ने कहा कि समूचा हिंदी साहित्य केवल स्त्री के महत्व को उद्घाटित, स्थापित और रेखांकित करने में जुटा रहा। यह काम बुंदेलखंड में प्रमुखता से हुआ है। उन्होंने रोबोट फिल्म का उदाहरण देते हुए बताया कि यदि आप समय से आगे निकल जाते हैं तो सभी प्रश्नों का जवाब नहीं मिल पाता है। दरअसल बाज़ार हर व्यक्ति को केवल उपभोक्ता बनाए रखना चाहता है। यदि आप सोचेंगे तो यह बाजार आप को खारिज या डिस्मेंटल कर देगा।
सीतापुर से आए डॉ शशांक कुमार सिंह ने बुंदेलखंड के मनीषियों को नमन करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मानव जीवन अपने आप में एक पहेली है। इसे समझने के लिए हर मनुष्य को विविध चुनौतियों से निपटना होता है। बुंदेलखंड की विरासत काफी समृद्ध है। बुंदेली लोक साहित्य आमजन की विभिन्न समस्याओं, पीड़ाओं और विसंगतियों को प्रमुखता से रेखांकित करता है। बुंदेलखंड में प्रेम, भक्ति और पराक्रम की त्रिवेणी सदैव बहती रही।
डॉ चित्रगुप्त श्रीवास्तव ने कहा कि बुंदेलखंड क्षेत्र के अनेक कवि अब भी अल्प ज्ञात हैं। उनका साहित्य लिपिबद्ध नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त ने इतिहास और साहित्य को जोड़ने का काम किया है लेकिन अब भी बुंदेली में गद्य लिखे जाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
हिंदी विभागाध्यक्ष और कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अपनी थाती को संजोए रखने के लिए हमने यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। उन्होंने सभी साहित्यकारों की रचनाओं से भी परिचित कराया। कहा कि लोक भाषाएं ही हिन्दी की असली ताकत हैं।
संचालन डॉ श्रीहरि त्रिपाठी ने किया। सभी अतिथियों को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो रक्ताभ भास्कर, प्रो पुनीत बिसारिया, प्रो रचना विमल, डॉ अचला पाण्डेय, डॉ जय सिंह, उमेश शुक्ल, डॉ सुनीता वर्मा, डॉ सुधा दीक्षित, डॉ प्रेमलता, डॉ नवीन पटेल, डॉ पुनीत श्रीवास्तव, डॉ अजय कुमार गुप्त, डॉ कौशल त्रिपाठी, डॉ राघवेन्द्र दीक्षित, डॉ शैलेंद्र तिवारी, डॉ अभिषेक कुमार, अतीत विजय समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रवींद्र शुक्ल ने कहा कि लार्ड मैकाले के मानस पुत्रों ने भारतीय संस्कृति के मान बिंदुओं को क्षत विक्षत कर यहां के लोगों को जाति और वर्ण में बांटकर लड़ाने का काम किया। हमें अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सचेत रहकर काम करना है।
बीयू के हिंदी विभाग में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में पूर्व मंत्री ने कहा कि हमारे मस्तिष्क में गलत नैरेटिव भर दिए गए। स्वतंत्रता के बाद भारतीय लोगों को कुंए का मेढक बनाने का सुनियोजित प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को पंगु बनाने का काम किया। उसने संस्कृत शिक्षा और गुरुकुल पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने ऐसा करके भारतीयों को उनकी जड़ों से काट दिया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के साहित्य को यदि निकाल दिया जाए तो साहित्य ठन ठन गोपाल हो जाएगा। महाकवि भूषण की रचनाओं को पाठ्यक्रम से निकाले जाने की भी कड़ी आलोचना की। शुक्ल ने श्रीरामचरित मानस के प्रचार और प्रसार में गोस्वामी तुलसीदास की भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि गोस्वामी जी न होते तो न जाने कितने लोग धर्मांतरण कर लेते। उन्होंने जगनिक, केशव, राय प्रवीण समेत विविध साहित्यकारों के साहित्य और उनके योगदान का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि मैथिलीशरण गुप्त जी के प्रेस में प्रूफ रीडिंग का काम लंबे समय तक किया। उन्होंने जीवित साहित्यकारों पर भी पीएचडी करने की व्यवस्था बनवाने का आग्रह किया। उन्होंने अपनी रचना शत्रुघ्न चरित्र का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय ने उम्मीद जताई कि यह संगोष्ठी विद्यार्थियों को अध्ययन और शोध के लिए नई दृष्टि देगी। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय शिक्षा के सभी विषयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शोध के लिए समुचित सुविधाएं मुहैया कराने को दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में बुंदेलखंड का अप्रतिम योगदान है। प्रो पाण्डेय ने मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं की सर्व ग्राह्यता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और उसकी बिरासत को सहेजने और विद्यार्थियों को प्रेरणा देने के लिए समुचित प्रबंध किए हैं। क्षेत्र की विरासत को विस्तार देने के लिए पीपीपी माडल पर बीयू में एक संस्थान भी बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम भारतीय संस्कृति के गौरव को ऊंचाई पर ले जाने के लिए कृत संकल्पित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे भारत विश्वगुरु अवश्य बनेगा।
जेएनयू दिल्ली के प्रो सुधीर प्रताप सिंह ने कहा कि प्राचीन साहित्य के औचित्य पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारे प्राचीन साहित्य का महत्व क्या है। लोक साहित्य की अवधारणाओं को भी समझने की जरूरत है। ऐसा कहा जा रहा है कि हमें नई शिक्षा नीति को देखते हुए नए रचनाकारों को खोजने और उन्हें पढ़ने की जरूरत है। ऐसे में और भी सचेत रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत भारती को नई दृष्टि से पढ़ने की जरूरत है। साथ ही मैथिलीशरण गुप्त के साहित्य के नए आयाम खोजने की आवश्यकता है।
हिंदुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज, हिंदी विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ बीयू और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय चिरगांव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन के अंतिम और समापन सत्र में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने पूर्व मंत्री रवींद्र शुक्ल और सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने श्री शुक्ल के साहित्यिक योगदान का भी जिक्र किया। संचालन डॉ अचला पाण्डेय ने किया। डॉ श्रीहरि त्रिपाठी ने सभी के प्रति आभार जताया।
प्रो सत्येंद्र दुबे ने राष्ट्रीय संगोष्ठी को अकादमिक यज्ञ करार दिया। उन्होंने कहा कि यहां बहुत सार्थक चर्चा हुई। संगोष्ठी के बेहतरीन आयोजन के लिए हिंदी विभाग को सराहा। उन्होंने हिंदी साहित्य की पाण्डुलिपियों को सहेजने की सुंदर व्यवस्था की सराहना भी की। प्रो जेवी पाण्डेय ने राष्ट्रीय संगोष्ठी को सुंदर अनुष्ठान करार दिया। उन्होंने बताया कि मुख की पवित्रता राम नाम से, हृदय की पवित्रता ज्ञान से, हाथ की पवित्रता दान से और पैरों की पवित्रता तीर्थ धाम गमन से होता है। इन चारों फलों की प्राप्ति इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में हो गई। बुंदेलखंड नहीं होता तो श्रीराम चरित मानस, केशव चंद्रिका, साकेत जैसी बेहतरीन रचनाएं हमें नहीं मिलती।
इस कार्यक्रम में प्रो मुन्ना तिवारी को श्रीराम रत्न सम्मान से नवाजा गया। प्रो जेवी पाण्डेय ने सभी अतिथियों को सुंदरकांड की प्रति देकर सम्मानित किया गया। पत्रकार मनमोहन मनु ने भी राष्ट्रीय संगोष्ठी की व्यवस्थाओं को सराहा। सभी अतिथियों को पुष्प गुच्छ और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो रक्ताभ भास्कर, प्रो पुनीत बिसारिया, प्रो रचना विमल, डॉ अचला पाण्डेय, डॉ जय सिंह, उमेश शुक्ल, डॉ सुनीता वर्मा, डॉ सुधा दीक्षित, डॉ प्रेमलता, डॉ नवीन पटेल, डॉ पुनीत श्रीवास्तव, डॉ अजय कुमार गुप्त, डॉ कौशल त्रिपाठी, डॉ राघवेन्द्र दीक्षित, डॉ शैलेंद्र तिवारी, डॉ अभिषेक कुमार, अतीत विजय, आकांक्षा सिंह समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। बाद में हिंदी विभाग के विद्यार्थियों ने रंगारंग कार्यक्रम भी पेश किया।