04 अगस्त 2024, झांसी।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हिंदी साहित्य के विकास में बुंदेलखंड का योगदान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयाग के कुलपति प्रो सत्यकाम ने कहा कि हिंदी के तमाम पाठ्यक्रमों में हिंदी की भगिनी भाषाओं को भी सभी विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए तभी हिंदी और समृद्ध होगी।
उन्होंने कहा कि हिंदी एक भाषा परिवार है। इसमें अवधी, बुंदेली और ब्रज समेत अनेक क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं। इन सभी भाषाओं ने हिंदी को समृद्ध किया है। हिंदी भाषा तब तक ही समृद्ध रहेगी जब तक इससे संबद्ध अन्य भाषाएँ पुष्पित और पल्लवित होंगी। गौर से देखें तो यह साफ होगा कि सभी भाषाएं आपस में मिलकर ही समृद्ध होती हैं। उन्होंने कहा कि हमें नई शिक्षा नीति के तहत मातृ भाषा बुंदेली में पढ़ाई की व्यवस्था करवानी चाहिए। वो इस संबंध में उचित व्यवस्था बनाने को प्रयासरत हैं। उन्होंने मोबाइल फोन की लत पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में सभी विद्यार्थी एक साथ दो डिग्री ले सकते हैं। उन्होंने सभी विद्यार्थियों से नई शिक्षा नीति का लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने बीयू के हिंदी विभाग में पाण्डुलिपियों और पुस्तकों के संग्रहण की उचित व्यवस्था की सराहना भी की।
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो पवन अग्रवाल ने कहां कि बुंदेलखंड अपने हृदय में हजारों वर्षों का इतिहास समेटे हुए है। वैदिक काल के यजुर्वेद के पहले कांड की रचना इसी क्षेत्र में हुई। जब से लेखन का कार्य शुरू हुआ तबसे बुंदेलखंड क्षेत्र ने अपना विशेष दखल बनाए रखा है। रामायण और महाभारत दोनों महाग्रंथों की रचना इसी क्षेत्र में रचे गए। महर्षि वेद व्यास और वाल्मीकि दोनों इस क्षेत्र के रहे। प्रो अग्रवाल ने विभिन्न रचनाकारों के मत का उल्लेख कर बुंदेलखंड के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हिंदी तमाम बोलियों का समुच्चय है। बुंदेलखंड ने साहित्य सृजन की समृद्ध परंपरा दी है। उन्होंने जगनिक और महाकवि केशव के कार्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि महावीर द्विवेदी और मैथिली शरण गुप्त ने खड़ी बोली के विकास में अप्रतिम योगदान दिया। बुंदेलखंड ने हिंदी के रचनाकारों को सदैव सही दिशा दिया।
प्रो सत्यकेतु ने कहा कि बुंदेलखंड ने सिर्फ हिंदी साहित्य ही नहीं पूरे देश को वैचारिक रूप से समृद्ध किया। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद करते हुए उनके योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने विविध प्रसंगों का उल्लेख कर तुलसीदास के साहित्य की विशेषताओं को रेखांकित किया।
गुजरात से आए प्रो संजीव दुबे ने कहा कि हिंदी साहित्य में बुंदेलखंड का योगदान अपरिमित है। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में मैथिलीशरण गुप्त के भाई सियाराम शरण गुप्त के साहित्य पर और प्रकाश लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को वर्तमान की चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।बुंदेलखंड को अब उद्योग खंड के रूप में विकसित करना चाहिए।
प्रो राजेश कुमार गर्ग ने बुंदेलखंड के सभी जिलों का उल्लेख कर कहा कि यह भक्ति और वीरता की भूमि है। उन्होंने घासीराम व्यास की पंक्तियां भी पेश कीं। उन्होंने कालिदास, तुलसीदास, विश्वदास, नाभा दास, हरिराम व्यास की रचनाओं का भी उल्लेख किया।
डा पवन पुत्र बादल ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा संवाद और जन जागरण से आगे बढ़ी है। जो जगाने का काम करता है वह महत्वपूर्ण होता है। जब हम ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाते हैं तो आगामी पीढ़ियां समृद्ध होती है। उन्होंने नचिकेता और ब्रह्मा संवाद का उल्लेख कर भारतीय संस्कृति की विशिष्टताओं का उल्लेख किया। उन्होंने महामृत्युंजय और गायत्री मंत्रों के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब किसी साहित्यकार की रचना जन जन के कंठ पर आ जाती है तो वह अमर हो जाता है। उन्होंने पंडित जगन्नाथ और पद्माकर की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों और संतों को सदैव भ्रमण करते रहना चाहिए तभी समाज का कल्याण होगा। उन्होंने महाकवि अवधेश की रचना का भी उल्लेख किया। बुंदेलखंड के साहित्यकारों का विस्तार से उल्लेख किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री अवध किशोर जड़िया ने कहा कि आज की संगोष्ठी बहुत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने खुद को कवि बताते हुए कहा कि पहला महाकाव्य ही बुंदेलखंड में रचा गया। पहले आचार्य महाकवि केशव भी बुंदेलखंड के ही रहे हैं। उन्होंने कवि केशव की रचनाएं सुनाकर उनकी खूबियों का उल्लेख किया। साहित्य का अनुपम शिल्प और विंब भी बुंदेलखंड में ही रचा गया। उन्होंने बुंदेलखंड के रचनाकारों के अनुपम शिल्प के उदाहरण भी पेश किए। उन्होंने कहा कि महाकवि केशव हिंदी साहित्य के चमत्कार हैं। उन्होंने कहा कि यदि बुंदेलखंड के एक दर्जन रचनाकारों को निकाल दिया जाए तो हिंदी का साहित्य आधा हो जाएगा। इससे बुंदेलखंड के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने सभी अतिथियों से अपनी रचनाएँ हिंदी विभाग को देने का भी आग्रह किया। अतिथियों ने समीक्षा नामक पत्रिका का विमोचन भी किया। डॉ सीमा श्रीवास्तव की एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया। सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। अतिथियों ने राष्ट्रकवि के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
संचालन डा अचला पाण्डेय ने किया। अंत में डा श्रीहरि त्रिपाठी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डा जेपी पांडेय, आद्या प्रसाद द्विवेदी, आईटीएचएम के विभागाध्यक्ष प्रो देवेश निगम, साहित्यकार प्रमोद अग्रवाल, डा नवीन पटेल, पत्रकारिता विभाग के समन्वयक डा जय सिंह, डा कौशल त्रिपाठी, उमेश शुक्ल, डॉ राघवेन्द्र दीक्षित, अतीत विजय, डॉ शैलेंद्र तिवारी, डा प्रेमलता, डॉ सुनीता वर्मा, डा सुधा दीक्षित, डॉ अजय कुमार गुप्ता, डा पुनीत श्रीवास्तव, मनमोहन मनु, दीपक त्रिपाठी समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।
वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में साहित्य की विविध विधाओं की शुरुआत ही बुंदेलखंड से ही हुई। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड की साहित्यिक परंपरा पर लंबे समय तक अनवरत चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कोई भी कृति तभी प्रसिद्ध होती है, जब उसमें लोक तत्व शामिल हो। उन्होंने कहा कि हिंदी कविता ही नहीं गद्य साहित्य में भी बुंदेलखंड का स्थान अहम है। यदि बुंदेलखंड के साहित्य को अलग कर दें तो हिंदी का साहित्य अधूरा रह जाएगा। उन्होंने कहा कि गौर करें तो बुंदेलखंड का हर लेखक वीर सैनिक सा दिखता है। बुंदेलखंड की लोक बोली में वह ताकत है जो खास प्रभाव स्थापित करती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे हिंदी का साहित्य और समृद्ध होगा।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती के उपलक्ष्य में हिंदी विभाग के डा वृंदावन लाल वर्मा सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डा रचना विमल ने कहा कि डॉ वृंदावन लाल वर्मा का लेखन अद्वितीय रहा। उन्होंने डॉ वर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी, को सुनकर हम बड़े हुए। यह पंक्तियां हमें सतत प्रेरणा देती रहीं। उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का साजिश रचा। विविध उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि डा वृंदावन लाल वर्मा शब्दों के जादूगर थे। उन्होंने बड़ी खूबसूरती से शिकारी साहित्य का सृजन और वर्णन किया है। उन्होंने सभी साहित्यकारों से डा वृंदावन लाल वर्मा के आदर्शों को शिद्दत से आत्मसात करने का आह्वान किया।
हिंदी गद्य साहित्य के विकास में बुंदेलखंड का योगदान विषयक दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो चंदन कुमार ने कहा कि हिंदी के बड़े साहित्यकार औपचारिक हिंदी शिक्षण से मुक्त रहें। आखिर क्या कारण है कि एक साहित्यकार की दृष्टि सत्ता के प्रभाव से ग्रस्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि हिंदी के बोध को रागात्मक और एकात्म बनाने में उप भाषाओं का अहम योगदान रहा है। ग्रियर्सन ने भारत में भाषा और बोली का अजीबोगरीब पेंच फंसाया जो आज भी जारी है। हिंदी जिन शब्दावली में नायकत्व को रचती है उसमें बुंदेलखंड का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। हिंदी गद्य का उत्साह यमुना के पार कैसे गायब हो गया यह प्रश्न भी विचारणीय है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जिन्होंने पैरोकारी की उनमें से अधिकांश अहिंदी भाषी थे। इस तथ्य को ध्यान में रखें। उन्होंने मस्तानी पर साहित्य क्षेत्र में काम करने का सुझाव दिया। राष्ट्रीयता के विकास में मुस्लिम रचनात्मकता के योगदान पर भी काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साहित्य को सम्यक दृष्टि से रचिए।
वर्धा से आए डॉ अवधेश कुमार शुक्ल ने केदारनाथ अग्रवाल और नागार्जुन के संबंधों को रेखांकित करने वाली एक रचना सुनाई। उन्होंने साहित्यकार केदारनाथ अग्रवाल की किसान की दशा को रेखांकित करती एक रचना का भी उल्लेख किया। उन्होंने बुंदेलखंड के साहित्यकारों की रचनाओं खासकर नाटकों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के अनेक रचनाकार देश के लोगों में राष्ट्र प्रेम और स्वतंत्रता का भाव भरने में लगे थे। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक सामाजिक उपन्यास और कहानियां लिखने में डा वृंदावन लाल वर्मा का कोई सानी नहीं है।
छपरा से आए प्रो सिद्धार्थ शंकर ने कहा कि विविध लोक भाषाओं के साहित्य से ही हिन्दी समृद्ध हुई है। उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं की सर्वग्राह्यता को भी रेखांकित किया। उन्होंने पीड़ा भरे शब्दों में कहा कि लोक साहित्य के साथ न्याय नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अपनी जमीन और संस्कृति से जुड़ने की कोशिश होनी चाहिए। उन्होंने कुछ कहानियों के बहाने डा वृंदावन लाल वर्मा के कथा दृष्टि का भी उल्लेख किया। डॉ महेंद्र प्रजापति ने कहा कि गोपाल राय ने बड़ी तन्मयता से डॉ वृंदावन लाल वर्मा पर लिखा है। उन्होंने डॉ वृंदावन लाल वर्मा और सियाराम शरण गुप्त की कहानियों का उल्लेख कर उनके कथ्य और शिल्प को अनुपम बताया। दिल्ली से आए डॉ गोपेश्वर दत्त पाण्डेय ने कहा कि हिंदी गद्य के विकास में व्यंग्य विधा के माध्यम से हरिशंकर परसाई ने अद्वितीय योगदान दिया। परसाई जी से पूर्व हम व्यंग्य को निबंध में गिनते थे। राष्ट्र की जनता की चिंताओं को व्यंग्य से जोड़कर परसाई जी ने अनूठा कार्य किया। उनकी व्यंग्य रचनाएं आम आदमी की कुंठाओं को स्वर देती हैं। हिंदी साहित्य के विकास में बुंदेलखंड की धरती का अतुलनीय योगदान है।
डॉ बलजीत श्रीवास्तव ने कहा कि बुंदेलखंड की धरा ने अनेक रचनाकारों को जन्म दिया। उन्होंने सियाराम शरण गुप्त की रचनाओं और उनकी विशेषताओं का प्रमुखता से उल्लेख किया। डॉ विनोद कुमार द्विवेदी ने कहा कि हिंदी गद्य साहित्य के विकास में डॉ वृंदावन वर्मा का अविस्मरणीय योगदान रहा। उन्होंने मैत्रेयी पुष्पा की रचनाओं की विशेषताओं का उल्लेख किया। कला संकाय अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी साहित्यकारों और विशेषज्ञों का स्वागत किया। डॉ प्रेमलता ने भी सबका स्वागत किया।
इस कार्यक्रम में डॉ नीति शास्त्री, डॉ अचला पांडेय, साहित्यकार प्रमोद अग्रवाल, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा प्रेमलता, डॉ सुनीता वर्मा, डॉ सुधा दीक्षित, डॉ द्युतिमालिनी, डॉ पुनीत श्रीवास्तव, डॉ राघवेन्द्र दीक्षित, उमेश शुक्ल, डॉ अजय कुमार गुप्ता, डॉ पवन अग्रवाल, डा बीवी त्रिपाठी, डॉ जेपी पाण्डेय, डॉ विपिन समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। सभी अतिथियों को सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया।