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पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया को मिला मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान

03.08.2024, झांसी।

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित कवि सम्मेलन में रचनाकारों ने अपनी इंद्रधनुषी रचनाओं से विद्यार्थियों और युवाओं में ऊर्जा का पुरजोर संचार किया। इसी कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया को मैथिली शरण गुप्त साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया।

बुविवि के हिंदी विभाग के तत्वावधान में आयोजित विशेष सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि झांसी मंडल के मंडलायुक्त डॉ विमल दुबे, विश्वविद्यालय कुलपति प्रो मुकेश पाण्डेय आदि ने पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया को मैथिली शरण गुप्त साहित्य सम्मान से प्रदान किया। डॉ जड़िया को श्रीफल,शाल, प्रशस्तिपत्र और नगद राशि देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर डॉ जड़िया ने अपने सम्बोधन में कहा कि हिंदी साहित्य में बुंदेलखंड का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने दद्दा के नाम पर स्थापित सम्मान मिलने को खुद के लिए गौरव का क्षण बताया। उन्होंने कहा कि हमारे पूज्य दद्दा जी भारत के हैं। वे भारती के हैं। वे खड़ी बोली के मंगलाचरण हैं। वे हमारे गौरव और गुमान हैं। वे हमारी पुलकन और सिहरन हैं। आशा के भाल पर तिलक के समान हैं।

मंडलायुक्त डॉ विमल दुबे ने कहा कि राष्ट्र कवि की रचनाओं ने समाज में राष्ट्र प्रेम, राष्ट्रीयता, कर्मशीलता, नैतिकता और मानवीय मूल्यों की स्थापना की। उन्होंने अपनी रचनाओं से देश में स्वर्ग की स्थापना का संदेश दिया। राष्ट्रकवि ने अपनी रचनाओं से राजा और प्रजा के आदर्श मूल्यों को भी रेखांकित किया। तुलसीदास और सूरदास के बाद मैथिली शरण जी वो सबसे महान कवि थे, जिन्होंने राष्ट्रीयता और मानवता के सुंदर मूल्यों को जन जन में भरा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो मुकेश पाण्डेय ने कहा कि उन्हें दद्दा की तीन जयंतियों को मनाने का अवसर मिला। यह उनके लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि शौर्य और वीरता की पर्याय रानी लक्ष्मीबाई झांसी की पहचान हैं। उन्होंने कहा कि दद्दा मैथिली शरण गुप्त ने अपनी रचनाओं से जो प्रतिमान स्थापित किए वे 138 साल बाद भी बेमिसाल हैं। वे अतुलनीय हैं। प्रो पाण्डेय ने कहा कि दद्दा ने अपने युग की समस्याओं पर फोकस कर युवाओं को उनके निराकरण के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दद्दा की एक रचना नर हो न निराश करो मन को का उल्लेख भी किया। उन्होंने भारत की कल्पना एक मंदिर के रूप में की है। उन्होंने दद्दा की कुछ रचनाओं का उल्लेख भी किया। यही नहीं सुख या दुख जो भी आ पड़े सभी धैर्य रखें ऐसा संदेश श्री गुप्त जी ने दिया।

मैथिली शरण गुप्त के प्रपौत्र वैभव गुप्त ने अपने बाबा की रचना से अपनी बात की शुरुआत की। उन्होंने डॉ अवध किशोर जड़िया जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का ब्यौरा पेश किया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण के नाम पर चिरगांव में एक संग्रहालय का निर्माण किया जाएगा। इसका भूमि पूजन इस साल दिसंबर में होगा। उन्होंने भारत भारती की कुछ पंक्तियां भी पेश कीं।

हिंदी विभागाध्यक्ष और कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त सम्मान के बारे में जानकारी दी।

सम्मान समारोह के बाद कवि सम्मेलन में डा विष्णु सक्सेना, श्वेता सिंह, नीलोत्पल मृणाल आदि ने अपनी रचनाओं से युवाओं की जमकर वाहवाही लूटी।

इस कार्यक्रम में प्रो एसपी सिंह, परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर, राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय, चिरगांव के प्रबंधक वैभव गुप्त, संपत्ति अधिकारी डॉ डीके भट्ट, प्रो पुनीत बिसारिया, डा बीवी त्रिपाठी, डा अचला पाण्डेय, डा श्रीहरि त्रिपाठी, डा नवीन पटेल, डा यतींद्र मिश्र, डा जय सिंह, डा कौशल त्रिपाठी, उमेश शुक्ल, डा राघवेन्द्र दीक्षित, डा अभिषेक कुमार, डा सुनील त्रिवेदी, डा नेहा मिश्रा, डा उपेंद्र सिंह तोमर, डा राजीव बबेले, डा शैलेंद्र तिवारी, डा प्रेमलता, डा सुनीता वर्मा, डा सुधा दीक्षित, डा शिप्रा वशिष्ठ, डा गुरदीप कौर त्रिपाठी, डा मनीषा जैन, डा स्वप्ना सक्सेना, डा अजय कुमार गुप्ता, केएल सोनकर, डा श्वेता पाण्डेय, डा सुनीता, दिलीप कुमार, संतोष कुमार, डा अंकिता, डा रानी शर्मा, डा ज्ञान अड़जरिया, डा पुनीत श्रीवास्तव, डा पूजा निरंजन, डा रूपेंद्र, डा द्युतिमालिनी, डा दीप्ति, डा ज्योति मिश्रा, डा ज्योति गुप्ता, डा निधि श्रीवास्तव, डा विनोद कुमार, डा रश्मि जोशी समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। कवि सम्मेलन का संचालन कवि अर्जुन सिंह चांद ने किया। अंत में कुलसचिव विनय कुमार सिंह ने सभी के प्रति आभार जताया।

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,,,,

झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में शनिवार को आयोजित कवि सम्मेलन में युवाओं ने जोरदार तालियां बजाकर रचनाकारों को अपनी ऊर्जा का आभास कराया। कवि सम्मेलन में रचना विमल ने एक रचना नारी स्वतंत्रता आकाश में उड़ती पतंग सुनाई। उन्होंने मां गंगा की पीड़ा को भी एक रचना से स्वर दिया। डा अवध किशोर जड़िया ने भी अपनी रचनाओं से युवाओं को झकझोरा। सजे सजाए फट अक्षत जलते दीपक दोनों नैना रचना भी पेश की।

कवयित्री श्वेता सिंह ने एक रचना – ’जमाने जैसे भर से जंग का ऐलान होती है,डगर ये प्रेम की कहां इतनी आसान होती है’ सुनाई। उन्होंने एक और रचना ‘तपिश गर धूप की हो तो सुहानी शाम हो जाऊं भी’ सुनाई। एक और मुक्तक ‘मत इ़थर देखिए, मत उधर देखिए’ भी सुनाई। उन्होंने एक गीत ‘क्षण भर में तुम कर देते महफ़िल में वीरान, जब कहते हो अब चलते हैं जाती है मेरी जान’ भी सुनाया। उन्होंने एक और रचना ‘लाख हमको डराओ डरेंगे नहीं’ रचना सुनाई।

युवा कवि नीलोत्पल मृणाल ने झांसी की धरती को प्रणाम करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने एक रचना ‘ऐ कवि कविता नहीं अपने समय की चिंता लिखो’ सुनाई। उन्होंने एक और गीत ‘कहां गया हाय मेरा दिन वो सलोना रे’ भी सुनाया। उन्होंने एक और रचना ‘थोड़ा सा नदी का पानी मुट्ठी भर रेत रख लो’ भी सुनाई। उन्होंने अपना गीत इलाहाबाद के लड़कों तुमसे ये मौका न छूटे भी सुनाया।

कवि अर्जुन सिंह चांद ने भी अपनी कुछ रचनाओं को पेश किया। उन्होंने दुनिया को एक नया कायदा दीजिए रचना पेश की। उन्होंने एक और गीत क्या ही महिमा कहें हम प्रभु राम की भी पेश की।

प्रख्यात डा विष्णु सक्सेना ने मां सरस्वती और मैथिली शरण गुप्त को प्रणाम कर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि जीवन भर मोहब्बत के लिए ही लिखा। उन्होंने एक रचना दिले बीमार सही वो दवाएं दे दे सुनाई। एक और रचना ऐ मेरे रब मैं सांस में महक जाऊं रचना भी सुनाई। उनकी एक और रचना तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको ने भी युवाओं को अजब ऊर्जा से भर दिया। उन्होंने एक रचना प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं,ज़ख्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं, ये मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया, मगर मैं तुम्हारा हरेक गम खरीद सकता हूं रचना सुनाकर भी तालियां बटोरीं। डा सक्सेना ने एक और रचना तू जो ख्वाबों में भी आए तो मेला कर दे भी सुनाया। उन्होंने एक गीत तन और मन हैं पास बहुत सुनाकर भी युवाओं के मन को झकझोरा। उन्होंने रचनाकारों की व्यथा को भी सुर दिया। उनकी रचना अब लगता है जाग जागकर, क्यों सपनों के बोझ उठाए,मुस्कानों को बेच बेचकर,आंसू अपने घर ले आए, प्रेम तो अब व्यापार बन गया, तड़पन उसकी मजबूरी है। उन्होंने एक और गीत चांदनी रात में,रंग ले हाथ में जिंदगी को नया मोड़ दें,,, सुनाया। उन्होंने एक और रचना थाल पूजा का लेकर चले आइए भी सुनाई। उन्होंने एक और रचना रेत पर नाम पर लिखने से क्या फायदा,एक आई लहर तो कुछ बचेगा नहीं सुनाकर युवाओं को झुमाया।

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